Gunjan Kamal

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लेखनी प्रतियोगिता -10-Apr-2022 छोटी - छोटी खुशियां

श्याम नंदन जी ने अपने बेटे राजीव को फोन लगाया।
"रिंग तो हो रही है लेकिन उठा नहीं रहा। लगता है सो गया। मैं भी ना! बच्चों वाली हरकतें कर रहा हूॅं।" फुल रिंग होने के बाद भी जब फोन नहीं उठाया गया तो मोबाइल हाथ में लिए श्याम नंदन जी सोचने लगें।

मोबाइल को हाथ में लिए श्याम नंदन जी बालकनी से उठकर अपने कमरे में सोने आने की सोच ही रहे थे कि तभी उनका मोबाइल बज उठा।

"हलो।" चहकते हुए श्याम नंदन जी ने कहा ।

"प्रणाम पापा" उधर से श्याम सुंदर जी के बेटे राजीव ने कहा।

"खुश रहो बेटा खुश रहो। तुमसे अपनी खुशी बांटने की सोच मैं यह भूल ही गया कि क्या समय हो रहा है? बिना समय देखे ही मैंने तुम्हें फोन लगा दिया। अभी ध्यान आया कि आज तो इतवार है। कल से तुम्हारा ऑफिस होगा इसलिए तुम लोग जल्दी सो गए होगे यही सोचकर दुबारा से तुम्हें कॉल नहीं किया।" श्याम नंदन जी ने बेटे से कहा।

"पापा! आप मुझे कभी भी कॉल कर सकते हैं। ऐसी कोई बात नहीं थी कि मैं सो रहा था हाॅं आधे घंटे में सोने जरूर जाता। वैसे इन सब बातों को छोड़िए यह बताइए कि मैंने जो आपसे कहा था वह आपने किया या नहीं।"  राजीव ने अपने पिता श्याम नंदन जी से पूछा।

अपने बेटे द्वारा पूछे जाने पर श्याम नंदन जी ने चहकते हुए कहा :-"वही बताने के लिए तो मैंने तुम्हें फोन किया था लेकिन तभी घड़ी पर नजर पड़ी और समय का आभास हुआ और मैंने फिर दुबारा तुम्हें फोन नहीं किया। जानते हो! बहुत वर्षों बाद तुम्हारी माॅं के चेहरे पर मैंने इतनी खुशी देखी है। आज मेरे एक बार कहने पर ही बाजार जाने के लिए तैयार हो गई। बन संवर कर जब कमरे से बाहर आई तो मेरी ऑंखें यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि आज उसने मेरी पसंद के रंग की साड़ी पहनी है। जैसा कि तुमने कहा था मैंने भी उसी समय तुम्हारी माॅं की तारीफ कर दी। तारीफ सुनकर आज  उसने मुझे ताना नहीं मारा बल्कि मुस्कुरा कर नजरें नीची कर ली।

सुनिए! मुझे पानीपुरी खाना है बाजार में जाते ही तुम्हारी माॅं ने कहा था। हाॅं हाॅं क्यों नहीं चलो! हम दोनों ही खाते  हैं । मैंने भी चेहरे पर मुस्कान रख कहा। तुम्हारी माॅं खुश हो गई। पानीपुरी खा हम दोनों माॅल में गए। वहां पर हम दोनों ने ही एक-दूसरे के लिए अपनी - अपनी पसंद से कपड़े खरीदें। उसके बाद हम होटल में खाना खाने के बाद ही वापस लौटे ताकि तुम्हारी माॅं को घर आकर खाना ना बनाना पड़े और यें बात मैंने उन्हें कह भी दी थी। तुम्हारी माॅं को यकीन नहीं हो रहा था कि मैं जो पहले बाहर खाना खाने के नाम से ही चिढ़ जाता था आज वह खुद होटल में ले जाकर खाना खाने की बात कर रहा था और तो और वह खाना खिलाकर भी लाया।

यह सब देखकर तुम्हारी माॅं  बहुत खुश हो गई। उनके चेहरे की चमक उनके दिल का हाल बयां कर रही थी। यही सारी बातें जब तुम्हारी माॅं सो गई है तब तुम्हें बताने आया हूॅं। बेटा! मुझे आपसे पहले मालूम ही नहीं था और मैंने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया था कि औरतें अपने पति द्वारा की जाने वाली छोटी - छोटी चीजों से ही खुश हो जाती है। आज से पहले तो मैं यही सोचता था कि औरतों को मंहगे- मंहगे कपड़े और गहनों से ही खुशी मिलती है लेकिन आज मैंने अपनी नजरों से साक्षात यह देख लिया कि  छोटी-छोटी खुशियां देकर भी उन्हें खुश किया जा सकता है। काश! यें बातें मुझे पहले मालूम हो जाती तो मैं अपने जीवन के इतने साल बर्बाद ना करता।"

"कोई बात नहीं पापा। देर आए दुरुस्त आए। आप दोनों एक - दूसरे के साथ खुश है इससे बड़ी बात मेरे लिए और क्या हो सकती है। मैंने आज तक आपलोगो को हमेशा लड़ते देखा है आज ऐसे खुश सुनकर बहुत खुशी हो रही है। आप दोनों एक - दूसरे की खुशी के लिए एक - दूसरे की पसंद - नापसंद का ध्यान रखते हुए ज्यादा से ज्यादा वक्त एक - दूसरे के साथ बिताए तभी आप दोनों एक - दूसरे को छोटी - छोटी खुशियां देकर खुश रख सकते हैं और आपको यह सब सिर्फ एक दिन ही नहीं बल्कि हमेशा ही ध्यान रखना होगा।" राजीव ने अपने पिता से कहा।

श्याम नंदन जी और राजीव बहुत देर तक बातें करते रहे। जब श्याम नंदन जी ने फ़ोन रख दिया तब राजीव ने अपना व्हाट्सएप खोला। अपनी माॅं के द्वारा भेजा गया मैसेज पढ़कर उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई।

राजीव की माॅं ने लिखा था कि "बेटा! आज तुम्हारी बातें मानकर मैंने भी उन्हें वह सबकुछ करने दिया जो वह कह रहे थे। उन्हें खुश करने के लिए मैं भी वही कर रही थी। एक -दो बातें तो मैंने अपने मन की भी उसमें जोड़ दी सिर्फ यह देखने के लिए कि कहीं पहले की तरह मेरे द्वारा की गई फरमाइशें यह मना ना कर दे लेकिन ऐसा  बिल्कुल भी नहीं हुआ। मेरे द्वारा की गई फरमाइशें उन्होंने तुरंत मान ली और उसे पूरा भी कर दिया। ईश्वर का शुक्र है कि उम्र के उत्तरार्ध  में आकर तुम्हारे पापा को अपनी  पत्नी का मन रखना तो आ ही गया। तुम्हारे  पापा को यह बात आज  आखिरकार समझ में आ ही  गई कि तुम जैसे बड़ों  की माॅं भी छोटी - छोटी चीजों में भी खुशियां ढूंढ़ ही लेती है और आज तो मैं कितनी खुश हो कि यह - रहकर मेरी पलकों पर  खुशी के ऑंसू आ ही जा रहे हैं।"

अपने पिता की बातें को फोन पर सुनकर और अपनी माॅं के मैसेज को पढ़कर राजीव भावुक हो गया। हाथ में मोबाइल पकड़े राजीव यही सोच रहा था कि प्रत्येक पति -  पत्नी यदि एक - दूसरे को दी जा रही  छोटी-छोटी खुशियों में खुश रहना सीख जाए तब यह जिंदगी उनके लिए बहुत ही खूबसूरत हो जाएगी इसीलिए सभी को यह कोशिश करनी चाहिए थी छोटी-छोटी खुशियों में खुश होकर अपने इस जीवन का आनंद ले और उसे खूबसूरत बनाएं

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                                  धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻

गुॅंजन कमल 💓💞💗
१०/०४/२०२२


# दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक बिषय पर लिखी गई कहानी


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13 Comments

Sobhna tiwari

29-Apr-2022 12:01 AM

👌👏🙏🏻

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Zainab Irfan

25-Apr-2022 04:15 PM

बहुत ही सुन्दर

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Shnaya

12-Apr-2022 03:59 PM

Very nice 👌

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